Wednesday, 6 August 2014

कहीं इश्क़ न हो जाये तुमसे

सामने आओ तो बात कुछ और होगी,
तुम जो झरोखो से निहारा करते हो ,
कहीं इश्क़ न हो जाये तुमसे

भीगी ज़ुल्फ़ों से ज़रा दूर ही रहना,
ये जो मेरी लट को हाथों से सवारा करते हो,
कहीं इश्क़ न हो जाये तुमसे

मेरी हज़ारों बातें और तुम्हारी एक मुस्कान,
फिर रज़ामंदी में, जो आँखों से इशारा करते हो
कहीं इश्क़ न हो जाये तुमसे

तुम्हारी आहटें अज़ीज़ हैं मुझे,
रखकर आँखों पर हाथ, जो धीरे से पुकारा करते हो
कहीं इश्क़ न हो जाये तुमसे

यूँ देखो तो लगता है बर्फ का दिल लिए बैठे हो,
पर जिस सादगी से, शायरी में अपनी, तुम ज़िक्र हमारा करते हो,
कहीं इश्क़ न हो जाये तुमसे 

2 comments:

  1. Yun jo apne ehsaason ko asaani se zubaan dete ho tum...kahin ishq na ho jaaye tumse..

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