Sunday, 23 November 2014

फ्रेंच रिवेरा

किसने सोचा था
की बैठे फ्रेंच रिवेरा पर एक दिन, शायरी करेंगे
की अनगिनत कहानियों से फिर वो पुरानी डायरी भरेंगे

 किसने सोचा था
के सुबह की सैर  होगी मेडिटरेनीयन के किनारा
के कभी बयान करने को किस्से, शब्द ही काम पड़ेंगे

किसने सोचा था के फासला दिन-रात का सा होगा
और फिर कुछ दोस्त नींद के थपेड़े भी खुश हो के सहेंगे

किसने सोचा था
के क्रेप और बागेत एक आम बात हो जायेंगे
के चॉकलेट ब्रेड के भरोसे पर दिन से रात करेंगे

किसने सोचा था
के आइफ़िल टॉवर एक दिन बस पांच घंटे की दूरी पर होगा
के हम बैठे उसके सामने, हर भूली बिसरी बात भी याद करेंगे

किसने सोचा था
के वक़्त इतनी जल्दी बीतने लगेगा

के हम अकेले एक नए देश में नए लोगों के साथ, नयी दुनिया में खुश रहने लगेंगे

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