Thursday, 5 January 2017

इंतज़ार

Photo by Gaganpreet Singh © 

















उस सहर से इस सहर तक
कुछ बदला ही नहीं,

फ़ोन की बीप अब भी किसी एक मैसेज की उम्मीद जगा देती है,
दरवाज़े पे कोई आहट, चाय की केतली गैस पर रखवा देती है,
क्योंकि ठंडी चाय तो तुम्हें भाती ही नहीं
तुम्हारे लौटने की उम्मीद कम है, कहते हैं वो...
पर इंतज़ार की आदत भी तो तुमने ही डाली थी,

सोचती हूँ,
किसी दिन,
बस यूँही
हमेशा की तरह,
मेरे भीगे बालों पर अपनी उंगलियां फिराने चले आओगे,
अपनी डायरी में सोई शायरी को मुझसे फिर से मिलवाने चले आओगे,
सोचती हूँ,
कोई तो गिला ज़रूर होगा,
के अब तक मुह फुलाए बैठे हो,
शायद बस उसे ही जताने चले आओगे,
फ्रांस और भारत इतनी दूर भी नही.
सोचती हूँ.
अब भी सोचती हूँ


उस शहर से इस शहर तक,
कुछ बदला ही नहीं 

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