कहने को जब कुछ भी रहे
तो एक नज़्म कह देना
कहीं कोने में दिल के एक खलिश सी गर, घर बना ले
देर से सिम्टा हुआ गुबार जब आँखों से बहे
तो एक नज्म कह देना
हज़ारों यादें बनके तारे आसमान में टिमटिमाने लगें
मुद्दत्तों बाद फिर एक आवारा ख्याल मुस्कुराने को कहे
तो एक नज़्म कह देना
सालों से उलझी हुई अधूरी दास्तानों में
कोई हमशक्ल, बेपरवाह, सा किस्सा निकल आये
तो एक नज्म कह देना
कभी दिन भर थके हारे, नींद फिर भी न आँखों में
ऐ भूले हुए, भटके हुए शायर, गर मेरी तरह, तुम्हे भी रात चढ़ जाये
तो एक नज़्म कह देना
तो एक नज़्म कह देना
कहीं कोने में दिल के एक खलिश सी गर, घर बना ले
देर से सिम्टा हुआ गुबार जब आँखों से बहे
तो एक नज्म कह देना
हज़ारों यादें बनके तारे आसमान में टिमटिमाने लगें
मुद्दत्तों बाद फिर एक आवारा ख्याल मुस्कुराने को कहे
तो एक नज़्म कह देना
सालों से उलझी हुई अधूरी दास्तानों में
कोई हमशक्ल, बेपरवाह, सा किस्सा निकल आये
तो एक नज्म कह देना
कभी दिन भर थके हारे, नींद फिर भी न आँखों में
ऐ भूले हुए, भटके हुए शायर, गर मेरी तरह, तुम्हे भी रात चढ़ जाये
तो एक नज़्म कह देना
Your poems are simple beautiful, Priyanka. Simple, Subtle and there is an amazing sense of positivity in each of your poems. I wonder how you manage to communicate even the most difficult things with such an ease. I follow your blog regularly, and believe me when I say this, whenever I feel low, reading your poems is what I do most of the times. Keep writing. Reading your poems is pure bliss. :)
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